सम्मान चालीसा
सम्मान चालीसा
दोहा-
जो देता सम्मान है, वह पाता सम्मान।
यह मधुमय उपहार है, विनिमयशील विधान।।
यह कुदरत की देन है, सब में इसको बाँट।
एक बूँद घटता नहीं, है अनंत यह घाट।।
चौपाई-
करना सीखो सबका आदर।
नहीं किसी का करो अनादर।।
जो सब की इज्जत करता है।
वह समाज में प्रिय बनता है।।
रहो प्रतिष्ठित करो प्रतिष्ठित।
विनय भावना रहे सुससज्जित।।
आदरणीय सभी को मानो।
साख्य भावना को पहचानो।।
उर में ममता की माला हो।
मन में समता का प्याला हो ।।
देख स्वयं को सभी जगह पर।
अति सम्मान दृष्टि रख सब पर।।
सम्मानित कर मित्र समझकर।
सदा हृदय से प्रेम किया कर।।
कभी किसी को मत दुत्कारो।
प्रेम सहित सब को पुचकारो।।
नहीं किसी को छोटा जानो।
सब को एक हैसियत मानो।।
सब में बसे हुये परमेश्वर।
दिव्य भाव से चलो देखकर।।
रहो सभी के पास निरन्तर।
करना सीखो बात स्वतंतर ।।
अति सम्मानपूर्ण सब कुछ हो।
हो विपरीत कभी नहिं कुछ हो।।
जो कुछ बोलो प्रेम से बोलो।
अपशब्दों का मुँह मत खोलो।।
करना सीखो शिष्ट आचरण।
पढ़ना सीखो सभ्य व्याकरण।।
सम्मानों का भण्डारण कर।
मुक्त हस्त से नित वितरण कर।।
घटता नहीं नित्य बढ़ता है।
पारा उपरि चढ़ा करता है।।
सम्मानों से सदा सजाओ।
हाव-भाव से हाथ मिलाओ।।
मन में कपट कभी मत रखना।
सब के प्रति हो कर नत रहना।।
संस्कृति पावन रच-रच गढ़ना।
मन से मान बढ़ाते चलना।।
माननीय रीति अति मधुमय ।
सदा मान में प्रीति समुच्चय।।
दोहा-
समानित कर विश्व को, यह अत्युत्तम भाव।
सहज प्रेम-सम्मान का, होता अमर प्रभाव।।
Muskan khan
12-Dec-2022 07:47 PM
Amazing
Reply
Rajeev kumar jha
12-Dec-2022 03:42 AM
बहुत खूब
Reply